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आज टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया की दुनिया से एक ऐसी खबर आई है जिसने भारत समेत पूरी दुनिया में करोड़ों यूजर्स को हैरान कर दिया है। हमारे पड़ोसी देश नेपाल ने एक बड़ा और कड़ा फैसला लेते हुए कई प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया है। आइए जानते हैं कि इस डिजिटल स्ट्राइक के पीछे की पूरी कहानी क्या है।
पड़ोसी देश नेपाल का बड़ा फैसला: Facebook, X, और YouTube समेत दर्जनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ब्लॉक, जानें पूरी वजह
नेपाल सरकार ने गुरुवार, 4 सितंबर को एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए देश में फेसबुक (Facebook), एक्स (X, पूर्व में ट्विटर), और यूट्यूब (YouTube) समेत लगभग दो दर्जन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को तत्काल प्रभाव से ब्लॉक करने की घोषणा की है। इस फैसले के बाद नेपाल के लाखों नागरिक इन वैश्विक प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
नेपाल के संचार और सूचना मंत्री, पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि ये कंपनियाँ बार-बार नोटिस दिए जाने के बावजूद देश के नियमों का पालन करने में विफल रहीं।
सरकार ने क्यों उठाया यह कड़ा कदम?
संचार मंत्री गुरुंग के अनुसार, नेपाल में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले इन सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म्स को कई बार आधिकारिक तौर पर देश में अपनी कंपनियों को पंजीकृत (Register) करने के लिए कहा गया था। सरकार की मुख्य मांग यह थी कि ये कंपनियाँ नेपाल में अपना एक संपर्क कार्यालय (Liaison Office) या एक प्रतिनिधि नियुक्त करें ताकि किसी भी मुद्दे पर सीधे उनसे संपर्क किया जा सके।
जब इन कंपनियों ने इस नियम का पालन नहीं किया, तो सरकार ने उन्हें ब्लॉक करने का फैसला किया। हालांकि, टिकटॉक (TikTok), वाइबर (Viber) और तीन अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा, क्योंकि इन कंपनियों ने सरकारी नियमों का पालन करते हुए अपना पंजीकरण करा लिया है।
क्या यह सिर्फ रेगुलेशन है या सेंसरशिप का खेल?
भले ही सरकार इस फैसले को कानूनी और रेगुलेटरी प्रक्रिया का हिस्सा बता रही हो, लेकिन इसके पीछे एक और कहानी भी है। नेपाल की संसद में एक बिल लंबित है जिसका उद्देश्य सोशल प्लेटफॉर्म को अधिक प्रबंधित, जिम्मेदार और जवाबदेह बनाना है।
हालांकि, इस बिल की मानवाधिकार समूहों और विपक्षी दलों द्वारा व्यापक रूप से आलोचना की गई है। आलोचकों का कहना है कि यह बिल असल में सेंसरशिप (Censorship) का एक हथियार है, जिसका इस्तेमाल सरकार ऑनलाइन अपनी आलोचना करने वाले और विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों की आवाज को दबाने के लिए कर सकती है। उनका आरोप है कि यह सरकार द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) पर अंकश लगाने का एक प्रयास है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया की निगरानी और यह सुनिश्चित करने के लिए कानून लाना आवश्यक था कि यूजर्स और ऑपरेटर दोनों उन प्लेटफॉर्म्स पर साझा की जा रही सामग्री के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह हों।
आगे क्या होगा?
इस फैसले ने नेपाल में डिजिटल स्वतंत्रता को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। एक तरफ सरकार की जवाबदेही तय करने की दलील है, तो दूसरी तरफ नागरिकों की आवाज को दबाए जाने का डर। फिलहाल, नेपाल के लाखों यूजर्स अब यह सोच रहे हैं कि वे अपने दोस्तों, परिवार और दुनिया से जुड़ने के लिए इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कैसे कर पाएंगे। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह डिजिटल प्रतिबंध कितने समय तक चलता है और इसका नेपाल के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर पड़ता है।






