ट्रम्प का दावा: पीएम मोदी ने कहा ‘रूस से तेल नहीं खरीदेगा भारत’? 2025 की तेल कूटनीति का सच

By Gaurav Srivastava

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आज हम एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहे हैं जो वैश्विक भू-राजनीति, ऊर्जा सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के केंद्र में है – भारत रूस तेल व्यापार और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया दावे। स्मार्टफोन की दुनिया से हटकर, आज हमारी चर्चा एक ऐसी ऊर्जा कूटनीति पर केंद्रित होगी जो न सिर्फ अर्थव्यवस्था बल्कि हर आम नागरिक के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। हाल ही में ट्रम्प ने एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा था कि भारत 2025 तक रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा। यह दावा तब आया है जब भारत दुनिया में रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदारों में से एक बनकर उभरा है। इस लेख में हम इस ट्रम्प मोदी रूस तेल दावा की सच्चाई को आंकड़ों और भू-राजनीतिक विश्लेषण के माध्यम से समझने की कोशिश करेंगे, साथ ही भारत की तेल आयात रणनीति के भविष्य पर भी प्रकाश डालेंगे।

चलिए, सबसे पहले एक नजर डालते हैं भारत की मौजूदा तेल आयात स्थिति और इस दावे से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर:

विवरण (Details) जानकारी (Information)
भारत की वैश्विक स्थिति दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता।
रूसी तेल का हिस्सा (2022 में) 1% से बढ़कर लगभग 40% तक पहुंचा।
रूसी तेल का हिस्सा (अप्रैल-सितंबर 2025) 40% से घटकर लगभग 36% रह गया।
कुल तेल आयात (सितंबर 2025) लगभग 4.88 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd)।
रूस से आयात में गिरावट (सितंबर 2025) मासिक आधार पर 9% की गिरावट (लगभग 1.6 मिलियन bpd)।
वित्तीय प्रभाव (सितंबर 2025) रूसी कच्चे तेल पर €2.5 बिलियन खर्च, अगस्त से 14% की कमी।
अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता मध्य पूर्व (45% हिस्सेदारी) और अमेरिका (213,000 bpd तक बढ़ा)।

ट्रम्प का दावा और भारत की ऊर्जा सुरक्षा: एक विस्तृत विश्लेषण

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का यह बयान कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कहा था कि भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नई बहस को जन्म देता है। यह दावा ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात काफी बढ़ा दिया है। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर करता है। ऐसे में, किसी एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता कम करना और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत की तेल आयात रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ट्रम्प के इस दावे को सिर्फ एक राजनीतिक बयान के तौर पर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसके पीछे भारत की जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक मजबूरियां भी हो सकती हैं।

भारत हमेशा से ही एक संतुलित विदेश नीति का पैरोकार रहा है, जहाँ राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होते हैं। रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना भारत के लिए एक आर्थिक लाभ का सौदा था, जिसने देश को बढ़ती वैश्विक ऊर्जा कीमतों से कुछ राहत प्रदान की। हालांकि, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में, भारत को अपने सहयोगियों को नाराज किए बिना अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नाजुक संतुलन बनाना पड़ता है। ट्रम्प का यह दावा, अगर सच है, तो यह दर्शाता है कि भारत वैश्विक दबावों और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बीच अपनी नीति में बदलाव पर विचार कर रहा था। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है? आइए, आंकड़ों के जरिए इस पर गहराई से नजर डालें।

भारत के तेल आयात का बदलता परिदृश्य: आंकड़े क्या कहते हैं?

भारत रूस तेल संबंधों को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जाती हैं, लेकिन आंकड़े एक स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद से, पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस को अपने तेल के लिए नए खरीदारों की तलाश थी। भारत ने इस अवसर का लाभ उठाया और रियायती दरों पर रूसी तेल का आयात तेजी से बढ़ाया। यह बदलाव भारतीय रिफाइनरियों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ।

रूस से तेल आयात की वर्तमान स्थिति

2022 की शुरुआत से पहले, भारत के कुल तेल आयात में रूसी तेल का हिस्सा 1% से भी कम था। लेकिन प्रतिबंधों के बाद, यह आंकड़ा तेजी से बढ़कर लगभग 40% तक पहुँच गया। यह एक अभूतपूर्व वृद्धि थी, जिसने भारत को रूस के सबसे बड़े ऊर्जा भागीदारों में से एक बना दिया। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के अनुसार, चीन के बाद भारत अब रूसी जीवाश्म ईंधन का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। हालांकि, हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि यह प्रवृत्ति कुछ हद तक बदल रही है।

अप्रैल-सितंबर 2025 की अवधि में, भारत के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी 40% से घटकर लगभग 36% रह गई। यह 8.4% की साल-दर-साल गिरावट को दर्शाता है। सितंबर 2025 में, रूस से भारत का आयात मासिक आधार पर 9% गिरकर लगभग 1.6 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) हो गया, जो फरवरी के बाद का सबसे निचला स्तर है। दिलचस्प बात यह है कि यह गिरावट तब हुई जब भारत का कुल तेल आयात सितंबर में लगभग 4.88 मिलियन bpd था, जो अगस्त से थोड़ा कम लेकिन साल-दर-साल 3.5% अधिक था। इसका मतलब है कि भारत अभी भी तेल आयात बढ़ा रहा है, लेकिन रूस पर उसकी निर्भरता कम हो रही है। इस अवधि में, भारत ने रूसी कच्चे तेल पर €2.5 बिलियन खर्च किए, जो अगस्त से 14% कम था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत की तेल आयात रणनीति में एक विचारणीय बदलाव आ रहा है।

अन्य आपूर्तिकर्ता और विविधीकरण

रूसी तेल के आयात में गिरावट के साथ, भारत अन्य स्रोतों से अपनी आपूर्ति बढ़ा रहा है। मध्य पूर्वी तेल का हिस्सा बढ़कर 45% हो गया है, जो पहले 42% था। यह मध्य पूर्वी देशों के साथ भारत के पारंपरिक ऊर्जा संबंधों की निरंतरता को दर्शाता है। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका से कच्चे तेल का आयात भी बढ़ा है। सितंबर 2025 में, अमेरिकी कच्चे तेल का आयात साल-दर-साल 6.8% बढ़कर लगभग 213,000 bpd तक पहुँच गया। यह बढ़ोतरी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंधों और भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविध बनाने के प्रयासों का परिणाम है।

यह सब इस बात का संकेत है कि भारत अपनी कच्चे तेल की टोकरी को अधिक संतुलित कर रहा है, जिसमें रूस, अमेरिका और ओपेक+ देशों के बीच एक स्वस्थ मिश्रण शामिल है। यह बदलाव न केवल भू-राजनीतिक दबावों का परिणाम है, बल्कि भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा रणनीति का भी एक हिस्सा है। भारत किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहता है, ताकि भविष्य में किसी भी अप्रत्याशित झटके से बचा जा सके। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट भी इस विविधीकरण की पुष्टि करती है।

भू-राजनीतिक संतुलन और भारत की कूटनीति

भारत रूस तेल संबंधों का विश्लेषण करते समय, भू-राजनीतिक संदर्भ को समझना महत्वपूर्ण है। भारत एक ऐसा देश है जो पश्चिमी और पूर्वी दोनों गुटों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है। ऐसे में, उसकी ऊर्जा कूटनीति एक नाजुक संतुलन का खेल बन जाती है।

पश्चिमी प्रतिबंधों का अवसर

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने रूस के लिए एक नया बाजार खोजने की आवश्यकता पैदा की। इससे भारत जैसे बड़े तेल उपभोक्ताओं के लिए एक “खरीदार का बाजार” (buyer’s market) बन गया। भारतीय रिफाइनरियों को वैश्विक बाजार दरों से काफी कम कीमत पर रूसी कच्चा तेल खरीदने का अवसर मिला। यह भारत के लिए एक बड़ा आर्थिक लाभ था, खासकर जब वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें आसमान छू रही थीं। इस रियायती तेल ने भारत को अपनी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और नागरिकों को कुछ राहत प्रदान करने में मदद की। यह दर्शाता है कि भारत ने अवसरों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

अमेरिकी दबाव और व्यापारिक सौदे

हालांकि, रूस से बढ़ते आयात पर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, की नजर थी। अमेरिका लगातार भारत से रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को कम करने का आग्रह कर रहा था। शोध मसौदे से पता चलता है कि अमेरिकी वार्ताकारों ने स्पष्ट रूप से रूसी तेल खरीद को भारत के लिए संभावित व्यापारिक लाभों से जोड़ा है। इसका मतलब है कि अगर भारत रूस से तेल खरीद कम करता है, तो उसे अमेरिका के साथ अन्य व्यापारिक समझौतों में फायदे मिल सकते हैं। यही कारण है कि अमेरिकी कच्चे तेल के आयात में वृद्धि को इसी भू-राजनीतिक दबाव और संभावित व्यापारिक सौदों के प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। भारत एक तरफ रूस से सस्ते तेल का लाभ उठा रहा था, वहीं दूसरी तरफ वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कदम भी उठा रहा था। इकोनॉमिक टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी प्रतिष्ठित समाचार संस्थाओं से मिले आंकड़े इन बदलावों को स्पष्ट करते हैं।

रणनीतिक विविधीकरण की आवश्यकता

भारत की ऊर्जा रणनीति केवल अल्पकालिक लाभों पर केंद्रित नहीं है। दीर्घकाल में, भारत किसी भी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहता है। ऊर्जा आपूर्ति का विविधीकरण भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। रूस, मध्य पूर्व, अमेरिका जैसे विभिन्न क्षेत्रों से तेल आयात करके, भारत किसी भी भू-राजनीतिक संकट या बाजार की अस्थिरता के प्रभावों को कम कर सकता है। यह कदम वैश्विक राजनयिक दबावों के अनुरूप भी है, जहां प्रमुख शक्तियों को किसी विशेष देश पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारत की तेल आयात रणनीति का यह पहलू उसे वैश्विक मंच पर अधिक लचीलापन प्रदान करता है।

भविष्य की दिशा और संभावित चुनौतियाँ

ट्रम्प के दावे के संदर्भ में, भारत की भविष्य की ऊर्जा नीति को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। क्या भारत वास्तव में 2025 तक रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा, या यह केवल एक बातचीत का हिस्सा था जिसे ट्रम्प ने सार्वजनिक किया? वर्तमान आंकड़ों के आधार पर, यह कहना मुश्किल है कि भारत पूरी तरह से रूसी तेल छोड़ देगा, लेकिन विविधीकरण की दिशा में स्पष्ट कदम उठाए जा रहे हैं।

सतत विविधीकरण की रणनीति

यह उम्मीद की जाती है कि भारत अपनी विविधीकृत आयात रणनीति को बनाए रखेगा। यह रणनीति लागत, कूटनीति और ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन साधने पर केंद्रित होगी। भारत शायद पूरी तरह से किसी एक स्रोत से आपूर्ति बंद नहीं करेगा, बल्कि धीरे-धीरे एक अधिक संतुलित आयात बास्केट की ओर बढ़ेगा। इससे उसे वैश्विक बाजार में मोलभाव करने की अधिक शक्ति मिलेगी और वह अपनी राष्ट्रीय हितों की बेहतर तरीके से रक्षा कर पाएगा। भारत के पास अपनी रिफाइनरी क्षमता और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार हैं, जो उसे भविष्य के आयात निर्णयों को आकार देने में मदद करेंगे।

वैश्विक बाजार का प्रभाव और घरेलू नीतियां

भविष्य में, रूस पर प्रतिबंधों में किसी भी ढील या वैश्विक तेल कीमतों में बदलाव से भारत के आयात पैटर्न तेजी से बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि रूस के लिए नए बाजार खुलते हैं या वैश्विक तेल की कीमतें फिर से गिरती हैं, तो भारत के लिए रियायती रूसी तेल का आकर्षण कम हो सकता है। इसके विपरीत, यदि कीमतें बढ़ती हैं और रियायतें मिलती रहती हैं, तो रूस एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता बना रह सकता है। भारत की बढ़ती रिफाइनरी क्षमता और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार भी भविष्य के आयात निर्णयों को आकार देंगे। भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने और निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए अपनी रिफाइनरियों का अधिकतम उपयोग करना चाहता है। यह एक जटिल समीकरण है जिसमें कई चर शामिल हैं।

कुल मिलाकर, भारत की तेल आयात रणनीति एक गतिशील प्रक्रिया है जो वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य, आर्थिक अनिवार्यता और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से प्रभावित होती रहेगी। ट्रम्प का दावा, अगर सच भी है, तो यह केवल एक संकेत हो सकता है कि भारत अपनी नीति में बदलाव की संभावनाओं पर विचार कर रहा है, लेकिन वास्तविक बदलाव आंकड़ों और सतत कूटनीति के माध्यम से ही आएंगे।

फायदे (Pros) नुकसान (Cons)
रियायती तेल: रूस से सस्ते कच्चे तेल की उपलब्धता ने भारत को आर्थिक लाभ पहुंचाया। भू-राजनीतिक दबाव: रूस से खरीद के कारण पश्चिमी देशों से संबंधों में तनाव की संभावना।
ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि: विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से तेल खरीदकर निर्भरता कम हुई। बाजार की अस्थिरता: वैश्विक तेल कीमतों या प्रतिबंधों में बदलाव से आयात पैटर्न प्रभावित हो सकते हैं।
आपूर्ति का विविधीकरण: किसी एक स्रोत पर निर्भरता कम होने से आपूर्ति श्रृंखला मजबूत हुई। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में जटिलता: प्रमुख शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती है।

पूरा रिव्यू देखें

भारत की इस जटिल तेल कूटनीति और वैश्विक तनाव के बीच इसकी evolving ऊर्जा रणनीति को और गहराई से समझने के लिए आप WION (World Is One News) द्वारा किया गया यह विस्तृत विश्लेषण देख सकते हैं:

(नोट: कृपया वास्तविक वीडियो आईडी या “India’s Oil Diplomacy WION” यूट्यूब पर सर्च कर नवीनतम अपलोड का उपयोग करें।)

निष्कर्ष

ट्रम्प के दावे और भारत की तेल आयात रणनीति पर गहराई से विचार करने के बाद, यह स्पष्ट है कि भारत एक जटिल और गतिशील ऊर्जा कूटनीति का पालन कर रहा है। पीएम मोदी ने ट्रम्प को जो भी कहा हो, आंकड़े बताते हैं कि भारत रूस से तेल खरीद को कम कर रहा है, लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं कर रहा। यह बदलाव भू-राजनीतिक दबावों, आर्थिक लाभों और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता से प्रेरित है। भारत अपनी तेल आपूर्ति को विविध कर रहा है, मध्य पूर्व और अमेरिका जैसे अन्य स्रोतों पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है। यह एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है जो भारत को वैश्विक मंच पर लचीलापन और सौदेबाजी की शक्ति प्रदान करता है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसके आर्थिक विकास और स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए, यह संभावना नहीं है कि भारत किसी भी राजनीतिक बयान के आधार पर अपनी ऊर्जा नीति में अचानक और नाटकीय बदलाव करेगा। इसके बजाय, हम एक सोची-समझी और चरणबद्ध विविधीकरण की रणनीति देखेंगे, जो राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत रूस से तेल खरीदना क्यों कम कर रहा है?
भारत रूस से तेल खरीदना इसलिए कम कर रहा है क्योंकि वह अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविध बनाना चाहता है। यह अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने, भू-राजनीतिक दबावों को कम करने और किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचने की रणनीति का हिस्सा है। इससे भारत की तेल आयात रणनीति में लचीलापन आता है।

ट्रम्प का ‘पीएम मोदी ने रूस से तेल नहीं खरीदेगा भारत’ वाला दावा कितना सच है?
ट्रम्प का दावा एक राजनीतिक बयान प्रतीत होता है। जबकि आंकड़े दर्शाते हैं कि अप्रैल-सितंबर 2025 में रूस से भारत का तेल आयात कम हुआ है, भारत ने पूरी तरह से खरीद बंद नहीं की है। यह संभावना है कि मोदी ने भविष्य में विविधीकरण की संभावनाओं पर बात की होगी, जिसे ट्रम्प ने एक पूर्ण प्रतिबद्धता के रूप में प्रस्तुत किया।

भारत अपनी तेल आयात रणनीति में विविधीकरण कैसे कर रहा है?
भारत अपनी तेल आयात रणनीति में विविधीकरण विभिन्न स्रोतों से तेल खरीदकर कर रहा है। वह रूस के साथ-साथ मध्य पूर्वी देशों जैसे इराक और सऊदी अरब, और संयुक्त राज्य अमेरिका से भी तेल आयात बढ़ा रहा है। यह बहुआयामी दृष्टिकोण भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।

क्या भारत के लिए रूस से तेल खरीदना फायदेमंद है?
हाँ, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना भारत के लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद रहा है। इसने भारत को बढ़ती वैश्विक तेल कीमतों के प्रभाव को कम करने में मदद की है और अपनी ऊर्जा लागत को नियंत्रित रखने में अहम भूमिका निभाई है, जिससे भारत रूस तेल व्यापार मजबूत हुआ है।

Gaurav Srivastava

My name is Gaurav Srivastava, and I work as a content writer with a deep passion for writing. With over 4 years of blogging experience, I enjoy sharing knowledge that inspires others and helps them grow as successful bloggers. Through Bahraich News, my aim is to provide valuable information, motivate aspiring writers, and guide readers toward building a bright future in blogging.

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