दत्तात्रेय होसबाले: RSS भारत के सभ्यतागत दर्शन का संरक्षक, 2025 शताब्दी वर्ष पर महत्वपूर्ण विचार

By Gaurav Srivastava

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भारत के सामाजिक-राजनीतिक पटल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का प्रभाव निर्विवाद है। अपनी स्थापना के 2025 शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर, यह संगठन देश के सांस्कृतिक और सभ्यतामूलक मूल्यों का एक महत्वपूर्ण संरक्षक बना हुआ है। वर्तमान में, संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, इस विशाल और प्रभावशाली संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि RSS भारत के सभ्यतागत दर्शन का संरक्षक है, जिसका कार्य केवल राष्ट्र निर्माण ही नहीं, बल्कि भारतीय जीवन पद्धति और मूल्यों को सहेजना और बढ़ावा देना भी है। यह लेख दत्तात्रेय होसबाले के विचारों, RSS की भूमिका और इसके ऐतिहासिक 2025 शताब्दी वर्ष के आलोक में इसके प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करेगा।

विवरण जानकारी
संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले (संगठन के कार्यकारी प्रमुख)
स्थापना वर्ष 1925
संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
मुख्य विचार भारत के सभ्यतागत दर्शन का संरक्षक, ‘भारतीय’ मूल्यों, आत्मनिर्भरता और सामाजिक सद्भाव पर जोर।
शताब्दी वर्ष 2025 शताब्दी वर्ष (100वां वर्ष), विशेष आयोजनों और अभियानों के साथ।
प्रमुख अभियान ‘पंच परिवर्तन’ (आत्मनिर्भरता, परिवार मूल्य, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण अनुकूल जीवन, नागरिक उत्तरदायित्व)
वर्तमान स्थिति भारत में सबसे बड़ा और प्रभावशाली स्वैच्छिक संगठन, व्यापक स्वीकार्यता और जमीनी स्तर का समर्थन।
मुख्य लक्ष्य चरित्र निर्माण, राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करना, जातिगत मतभेदों को दूर करना और समतामूलक समाज का निर्माण।
सरकार से संबंध सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की नीतियों के साथ अक्सर संरेखित, नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका।

दत्तात्रेय होसबाले और RSS का नेतृत्व संदर्भ

दत्तात्रेय होसबाले वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह हैं, जो भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली स्वैच्छिक संगठनों में से एक है। इसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। एक सदी में, RSS एक राष्ट्रवादी समूह से मुख्यधारा की सामाजिक-सांस्कृतिक शक्ति बन गया है। होसबाले जी भारत के सभ्यतागत दर्शन के संरक्षक माने जाते हैं, जो ‘भारतीय’ मूल्यों, आत्मनिर्भरता और सामाजिक सद्भाव पर आधारित समाज की वकालत करते हैं। उनका नेतृत्व संघ को अपने ऐतिहासिक 2025 शताब्दी वर्ष की ओर ले जा रहा है।

RSS के नवीनतम आंकड़े और मील के पत्थर

RSS शताब्दी वर्ष 2025 एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक डाक टिकट और सिक्का जारी करना, संघ के “निस्वार्थ” राष्ट्र-निर्माण कार्य की आधिकारिक मान्यता को दर्शाता है, जैसा कि दत्तात्रेय होसबाले ने कहा। RSS की पहुंच अब भारतीय शहरों, गाँवों और प्रवासी समुदायों तक फैल चुकी है, जो इसकी अखिल-भारतीय और वैश्विक प्रभाव की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। होसबाले जी के अनुसार, एक सदी पहले के “उदासीनता और विरोध” से संघ अब व्यापक “स्वीकार्यता” की ओर बढ़ गया है, जिसका श्रेय जमीनी स्तर के अथाह समर्थन को जाता है।

RSS का मूल दर्शन और मिशन

होसबाले के नेतृत्व में RSS स्वयं को भारत के सभ्यतागत दर्शन का संरक्षक मानता है। यह ‘स्व’ (आत्मसत्ता), पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरणीय चेतना और नागरिक कर्तव्य पर विशेष जोर देता है। संघ का मिशन चरित्र निर्माण और राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करने के लिए समाज को संगठित करना है, जिसमें जातिगत भेदभाव को मिटाना भी शामिल है। दत्तात्रेय होसबाले ‘स्वदेशी’ (स्वदेशी उत्पादन और उपभोग) की वकालत करते हैं, जिसे वे ‘पंच परिवर्तन’ का हिस्सा मानते हैं। इसका उद्देश्य भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है। यह समग्र विकास का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है।

प्रमुख नीतिगत विचार और विवाद

RSS के नीतिगत विचार अक्सर बहस का विषय बनते हैं। जून 2025 में, दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को हटाने का आह्वान किया था, यह तर्क देते हुए कि वे मूल रूप से शामिल नहीं थे। उन्होंने धार्मिक धर्मांतरण और आप्रवासन पर चिंता व्यक्त की है, हिंदू आबादी में “असंतुलन” की चेतावनी दी, और सख्त धर्मांतरण विरोधी कानूनों का समर्थन किया। होसबाले जी ने “लव जिहाद” अवधारणा का भी समर्थन किया, और ऐसे कानूनों की वकालत की है। यह संघ के दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण पहलू है। दत्तात्रेय होसबाले अक्सर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की नीतियों के साथ संरेखित होते दिखते हैं।

RSS की सामाजिक भूमिका पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

RSS ने विभिन्न संकटों और आपदाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे विभाजन, 1984 के सिख विरोधी दंगे, और हाल की प्राकृतिक आपदाएँ। इन प्रयासों ने संघ की एक सेवा-उन्मुख संगठन के रूप में छवि को मजबूत किया है। दत्तात्रेय होसबाले भारत के बारे में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक “सकारात्मक, सत्य-आधारित” आख्यान की आवश्यकता पर जोर देते हैं। संघ ने अपनी संगठनात्मक अनुकूलनशीलता भी दिखाई है, स्थानीय शाखाओं से डिजिटल प्लेटफार्मों तक, जिससे यह सभी पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक बना हुआ है। यह संघ की यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है।

भविष्य की दिशा और रुझान

RSS शताब्दी वर्ष 2025 के लिए, दत्तात्रेय होसबाले ने हर भारतीय घर तक पहुंचने का अभियान घोषित किया है, जो समाज में संघ की गहरी पैठ बनाने की महत्वाकांक्षा का संकेत है। संघ अब भारत के सभ्यतागत आख्यान को विदेशों में भी पेश करने पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य वैश्विक भारतीय प्रवासियों को प्रभावित करना है। भाजपा सरकार से घनिष्ठ संबंधों के कारण, RSS शिक्षा, संस्कृति, सुरक्षा और जनसांख्यिकी जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नीतियों को आकार देना जारी रखेगा। हालांकि, संघ को धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक अधिकारों पर अपने रुख को लेकर भी जांच का सामना करना पड़ सकता है, जो उसकी प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है

प्रमुख पहलें और उदाहरण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने दर्शन और लक्ष्यों को दर्शाने वाली कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। इनमें से एक प्रमुख पहल ‘पंच परिवर्तन’ है, जो पांच-सूत्रीय एजेंडा है। यह आत्मनिर्भरता, परिवार मूल्यों, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण अनुकूल जीवन और नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, आत्मनिर्भरता पर जोर देकर, RSS स्थानीय उद्योगों और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। सामाजिक सद्भाव के लिए, संघ जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करता है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा RSS के शताब्दी वर्ष को चिह्नित करने के लिए जारी किया गया स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

RSS के कार्य के सकारात्मक पक्ष और चुनौतियाँ

सकारात्मक पक्ष (Pros) चुनौतियाँ (Challenges)
व्यापक सामाजिक सेवा: आपदा राहत और समाज सेवा में सक्रिय योगदान। संवैधानिक बहस: संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की वकालत।
सांस्कृतिक संरक्षण: ‘भारतीय’ मूल्यों और सभ्यतागत दर्शन को बढ़ावा देना। जनसांख्यिकीय चिंताएँ: धर्मांतरण और आप्रवासन पर सख्त रुख, ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दे।
चरित्र निर्माण: युवाओं में अनुशासन और राष्ट्रभक्ति के संस्कार विकसित करना। अल्पसंख्यक अधिकारों पर सवाल: धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर संघ के विचारों पर बहस।
जमीनी स्तर पर स्वीकार्यता: एक सदी के संघर्ष के बाद व्यापक जन-समर्थन। विवादित नीतियां: जनसंख्या नियंत्रण और धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर संघ का दबाव।
आत्मनिर्भरता पर जोर: ‘स्वदेशी’ और ‘पंच परिवर्तन’ के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक स्वावलंबन। वैचारिक ध्रुवीकरण: संघ के विचारों को लेकर समाज में ध्रुवीकरण का जोखिम।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

यहां दत्तात्रेय होसबाले और RSS से संबंधित कुछ सामान्य प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं:

  • RSS का मूल दर्शन क्या है?

    RSS का मूल दर्शन ‘भारतीय’ मूल्यों, सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित है। यह संगठन स्वयं को भारत के सभ्यतागत दर्शन का संरक्षक मानता है। संघ चरित्र निर्माण, स्वदेशी को बढ़ावा देने और जातिगत भेदभाव मिटाकर एक मजबूत समाज बनाने का लक्ष्य रखता है, जैसा कि दत्तात्रेय होसबाले ने बताया है।

  • RSS 2025 में क्या मना रहा है और क्यों?

    RSS 2025 शताब्दी वर्ष मना रहा है क्योंकि इसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा हुई थी। यह संगठन के 100 साल पूरे होने का प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक डाक टिकट और सिक्का जारी कर संघ के योगदान को सम्मानित किया, जिसे दत्तात्रेय होसबाले ने राष्ट्र-निर्माण के निस्वार्थ कार्य की मान्यता बताया।

  • RSS समाज में कैसे योगदान देता है?

    RSS विभिन्न तरीकों से समाज में योगदान देता है। स्वयंसेवक आपदा राहत कार्यों में सक्रिय रहते हैं। संघ ‘पंच परिवर्तन’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक सद्भाव, परिवार मूल्यों और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है। यह युवाओं में अनुशासन और राष्ट्रभक्ति के मूल्यों को भी विकसित करने का प्रयास करता है।

  • दत्तात्रेय होसबाले किन प्रमुख नीतिगत विचारों का समर्थन करते हैं?

    दत्तात्रेय होसबाले संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने का आह्वान करते हैं। वे धार्मिक धर्मांतरण और आप्रवासन पर चिंताएं व्यक्त करते हुए सख्त धर्मांतरण विरोधी कानूनों का समर्थन करते हैं। ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों पर भी उनकी वकालत है। वे अक्सर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की नीतियों के साथ संरेखित होते हैं।

Gaurav Srivastava

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