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बहराइच के जंगलों से सटे इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। आए दिन होने वाले हमलों के बीच ग्रामीणों को खौफ के साए में जीना पड़ रहा है। ऐसी ही एक दिल दहला देने वाली घटना मिहींपुरवा तहसील से सामने आई है, जहां एक महिला ने अपनी जान बचाने के लिए अद्भुत साहस का परिचय देते हुए खूंखार तेंदुए से अकेले ही लोहा ले लिया। यह घटना न केवल उस महिला की बहादुरी की मिसाल है, बल्कि यह वन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है कि आखिर ग्रामीण अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए कब तक इस तरह के जानलेवा हमलों का सामना करते रहेंगे?
जान हथेली पर रखकर तेंदुए से भिड़ी महिला
जिंदगी की जंग में कभी-कभी इंसान को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जहां हिम्मत ही उसका सबसे बड़ा हथियार बन जाती है। कल्याणी देवी के लिए भी शुक्रवार का दिन कुछ ऐसा ही था, जब उनका सामना सीधे मौत से हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
खेत में काम के दौरान खूंखार जानवर का हमला
कोतवाली मुर्तिहा क्षेत्र के सेमरी घटही गांव की निवासी 35 वर्षीय कल्याणी देवी पत्नी काशीराम रोज की तरह अपने खेत में काम कर रही थीं। चारों ओर शांति थी और उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि पास के जंगल से मौत उन पर नजर गड़ाए हुए है। तभी अचानक, घनी झाड़ियों से निकलकर एक तेंदुए ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया। इससे पहले कि कल्याणी कुछ समझ पातीं, तेंदुआ उन पर हावी हो चुका था।

तीन मिनट तक चली जिंदगी और मौत की जंग
हमले के बाद एक पल के लिए घबराईं कल्याणी ने तुरंत खुद को संभाला। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए तेंदुए से भिड़ने का फैसला किया। यह संघर्ष लगभग तीन मिनट तक चला। एक तरफ खूंखार जानवर के नुकीले पंजे और दांत थे, तो दूसरी तरफ एक मां और पत्नी का अपनी जिंदगी बचाने का अदम्य साहस। इस दौरान वह लगातार मदद के लिए शोर मचाती रहीं। उनकी चीखें सुनकर पास में काम कर रहे परिवार के एक व्यक्ति और अन्य ग्रामीण लाठी-डंडे लेकर घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। ग्रामीणों को अपनी ओर आता देख तेंदुए ने बचाने दौड़े व्यक्ति पर भी झपट्टा मारा, जिससे उसके हाथ में खरोंचें आ गईं।
ग्रामीणों के साहस से बची जान, जंगल की ओर भागा तेंदुआ
यह ग्रामीणों की एकता और साहस ही था जिसने कल्याणी देवी को एक नई जिंदगी दी। यदि मदद पहुंचने में थोड़ी भी देर हो जाती, तो परिणाम कुछ और हो सकता था।

शोर सुनकर लाठी-डंडों के साथ दौड़े लोग
कल्याणी की चीखें जैसे ही आसपास के लोगों के कानों तक पहुंचीं, वे बिना एक पल गंवाए एकजुट हो गए। हाथों में लाठी-डंडे लेकर उन्होंने शोर मचाना (“हांका लगाना”) शुरू कर दिया। ग्रामीणों की बढ़ती भीड़ और उनके आक्रामक तेवर देखकर खूंखार तेंदुआ घबरा गया और कल्याणी को छोड़कर वापस जंगल की ओर भाग निकला।
घायल महिला जिला अस्पताल में भर्ती
तेंदुए के जाने के बाद, ग्रामीणों ने तुरंत एंबुलेंस को सूचना दी। खून से लथपथ और गंभीर रूप से घायल कल्याणी देवी को पहले मोतीपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में भर्ती कराया गया। वहां प्राथमिक उपचार के बाद, उनकी गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें बहराइच जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया है, जहां उनका इलाज चल रहा है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और ग्रामीणों का आक्रोश
घटना की जानकारी मिलते ही वन विभाग के अधिकारी हरकत में आए, लेकिन ग्रामीणों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है। उनका आरोप है कि विभाग केवल तात्कालिक कार्रवाई करता है, समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकालता।
वन विभाग की टीम मौके पर, दी आर्थिक सहायता
सूचना मिलते ही वन दारोगा गणेश शंकर शुक्ल और ऋषभ सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और तेंदुए के हमले की पुष्टि की। मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएफओ (प्रभागीय वनाधिकारी) सूरज कुमार के निर्देश पर वन विभाग ने घायल महिला के पति को तत्काल पांच हजार रुपये की आर्थिक सहायता राशि प्रदान की है।
‘सिर्फ खानापूर्ति कर रहा विभाग’, लोगों में गुस्सा
वन विभाग की इस कार्रवाई को ग्रामीण केवल खानापूर्ति मान रहे हैं। गांव के लोगों में आक्रोश है। उनका कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। आए दिन तेंदुए और बाघ जंगल से निकलकर आबादी वाले इलाकों में घुस आते हैं और इंसानों व मवेशियों पर हमला करते हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग द्वारा सुरक्षा के कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। चेतावनी बोर्ड लगाने या पिंजरा लगाने की मांग पर भी कोई सुनवाई नहीं होती, जिसके कारण वे खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं।
यह घटना एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती है कि आखिर बहराइच में मानव-वन्यजीव संघर्ष का यह सिलसिला कब थमेगा और ग्रामीण कब बिना किसी डर के अपने खेतों में काम कर पाएंगे।






